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Tuesday, December 15, 2015

सफ़र

वो एक सफ़र था
यादों की बारात लेके
दिल के ज़ख़्म में खून की नमी लेके
आँखों के प्यालों में आसुओं का सागर लिए
मरहम की तलाश में तडपती गिड़गीडाती
नशे में भी जो सो ना पाती
वक़्त की बहाव ने वो ज़ख़्म जब मिटाया
खुदा को फिर से एक मज़े की सोच आई
एक दिल रूबा को फिर से मेरे दिल में बसाया
और हस्ते हस्ते ही दिल में तलवार घुसा दी
बहने को अब ना था दिल में लहू
रोने को अब ना थे आँखों में आँसू
बस रह गए ज़हन में काँटे यादो के
और फिर तलाश में निकले है हम
उस जादूई मरहम की
दुनिया बुलाए हुमको पागल आवारा
मगर हो गये है हमको अब
मोहब्बत मेरी सफ़र से यारा

- विनीत मोहनदास

Sunday, December 6, 2015

तन्हाईया

गीला गीला सा यह समाँ
गीली पत्तियाँ, गुलाबों की कलियाँ
उसमे घनी घनी सी यह तनहाईयाँ
जो कह रही है कि तुम नही हो यहाँ
बेबस सी लगे मुझे
अपनी दिल की बेचैनियाँ
ढूँढ रही है यह नज़रें की
तुम हो कहाँ
एक फरिश्ते की तरह मेरी ज़िन्दगी में आई
बिजली सी एक रोशनी बिखराई
ग़ालिब के शायरों को मेरे होटों तक लाई
और इस नाचीज़ को भी शायर बना गयी
प्यार एक एहसास है जो
छोटे लम्हों की तखलीक है
उन लम्हों को तुम जीलो ज़रा
ना होगा अफ़सोस मौत का भी यारा

- विनीत मोहनदास