गीला गीला सा यह समाँ
गीली पत्तियाँ, गुलाबों की कलियाँ
उसमे घनी घनी सी यह तनहाईयाँ
जो कह रही है कि तुम नही हो यहाँ
बेबस सी लगे मुझे
अपनी दिल की बेचैनियाँ
ढूँढ रही है यह नज़रें की
तुम हो कहाँ
एक फरिश्ते की तरह मेरी ज़िन्दगी में आई
बिजली सी एक रोशनी बिखराई
ग़ालिब के शायरों को मेरे होटों तक लाई
और इस नाचीज़ को भी शायर बना गयी
प्यार एक एहसास है जो
छोटे लम्हों की तखलीक है
उन लम्हों को तुम जीलो ज़रा
ना होगा अफ़सोस मौत का भी यारा
- विनीत मोहनदास
- विनीत मोहनदास
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