दिल में एक राज़ था
जो होटों तक आया नही
नज़रों से बातें करती थी
लफ़्ज़ों के सहारे नही
जिस के इन्तज़ार में
तमाम-ए-उम्र बीत गई
आख़िर जब वह नज़र आई तो
हम गुलाम किसी ओर के हो गये
- विनीत मोहनदास
जो होटों तक आया नही
नज़रों से बातें करती थी
लफ़्ज़ों के सहारे नही
जिस के इन्तज़ार में
तमाम-ए-उम्र बीत गई
आख़िर जब वह नज़र आई तो
हम गुलाम किसी ओर के हो गये
- विनीत मोहनदास
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